ज्योतिष की प्रारंभिक जानकारी

ज्योतिष की प्रारम्भिक जानकारी

Summary: मुझसे जन्म पत्रिका बनवाने वाले सदस्य कुंडली का सामान्य ज्ञान प्राप्त लें , ताकि जब आपके पास कुंडली जाए तो आपको आपकी जन्म पत्रिका समझने मे आसानी हो । जब आप अपनी पत्रिका को समझ जाएँगे तब आप अपने समस्याओं का समाधान ठीक से कर सकते हैं
ज्योतिष की प्रारंभिक जानकारी

मुझसे जन्म पत्रिका बनवाने वाले सदस्य कुंडली का सामान्य ज्ञान प्राप्त लें , ताकि जब आपके पास कुंडली जाए तो आपको आपकी जन्म पत्रिका समझने मे आसानी हो । जब आप अपनी पत्रिका को समझ जाएँगे तब आप अपने समस्याओं का समाधान ठीक से कर सकते हैं ।  

1 - जन्म कुंडली में 12 भाव होते हैं , जिन भावो से हम अपने शरीर के अंग एवं उनसे संबन्धित बीमारी , रिश्तेदार , रोजगार , आमदनी , लाभ , हानि इत्यादि के बारे में जानकार उनसे संबन्धित समस्याओं का समाधान करते है । इसको समझने के लिए ऊपर दिये गए कुंडली को देखें । ऊपर दिए गए कुंडली में जहाँ 1 लिखा है वो पहला भाव है इसी तरह से आगे समझें ।

परंतु आपकी कुंडली मे जो अंक लिखा होता है वो भाव को नहीं दर्शाता है बल्कि वो राशि को दर्शाता है ।

जैसे आपकी कुंडली में 1 लिखा है तो इसका मतलब होता है जहाँ 1 लिखा है वहाँ मेष राशि विराजमान है एवं इसक स्वामी मंगल है , 2- वृष – शुक्र , 3 -मिथुन - बुध 4 – कर्क – चन्द्र , 5- सिंह – सूर्य , 6 – कन्या – बुध , 7 – तुला – शुक्र , 8 – वृश्चिक – मंगल , 9 – धनु – गुरु , 10 – मकर – शनि , 11 – कुम्भ - शनि , 12 – मीन – गुरु ।

प्रत्येक कुंडली के प्रथम भाव में अलग – अलग अंक लिखा होता है , इसका मतलब जो अंक लिखा है उसी लग्न ( राशि ) की आपकी कुंडली है ।

2 - कुंडली में जो ग्रह जहाँ बैठते हैं वहाँ से अलग – अलग जगह पर अपनी दृष्टि डालते हैं मतलब देखते हैं , इसलिए आपकी कुंडली में जो फलादेश लिखा रहता है उसमे एक ही ग्रह अच्छे एवं बुरे दोनों फल देते हैं । ग्रह जहाँ बैठते हैं उसका फलादेश अलग होता है एवं जहाँ देखते है उसका फलादेश अलग होता है ।

3 - कोई भी ग्रह जब छठे , आठवे एवं बरहवे भाव में बैठ जाते है तो उनके फल में कमी आती है जिसके कारण वे जिसके स्वामी होते हैं उसके सुख में कमी आती है । जैसे मान लें किसी कुंडली में पंचम भाव का स्वामी 6 , 8, या 12 भाव में बैठ जाए तो संतान एवं विद्या के सुख में कमी आएगी परंतु कोई दूसरा मित्र ग्रह पंचम भाव में विराजमा हो जाये या पंचम भाव को शुभ दृष्टि से देख रहा हो तो इसके सुख मे ज्यादा कमी नहीं आएगी । इसलिए एक ही ग्रह के फलादेश को पढ़कर आखिरी निर्णय ना माने बल्कि सभी ग्रहों के फलादेश को पढ़ने के बाद ही आखिरी निर्णय माने ।

4 - कोई भी ग्रह 10 अंश से नीचे एवं 20 अंश से ऊपर कमजोर होने लगते हैं एवं 4 अंश से नीचे तथा 24 अंश से ऊपर बिलकुल कमजोर हो जाते है जिसके कारण उनसे संबन्धित लाभ एवं सुख में कमी आती है ।

5 – किसी भी ग्रह के वक्री हो जाने से फलादेश में कोई परिवर्तन नहीं होता है सिर्फ बल में वृद्धि होती है । 

6 - किसी भी ग्रह के नीच राशी में विराजमान होने का अर्थ गंदा या खराब नहीं है । इसका अर्थ है की ग्रह अपना पूर्ण फल नहीं दे रहा है । ग्रह सिर्फ निम्न अंशों तक हीं नीच राशी में माने जाते हें । इससे ऊपर नीच नहीं माने जाते हें । सुर्य – 10 अंश / चन्द्र – 3 अंश / मंगल – 28 अंश / बुध – 15 अंश / गुरु – 5 अंश / शुक्र – 27 अंश / शनि – 20 अंश

7 – अस्त ग्रह – सूर्य के साथ विराजमान होने पर भी निम्न अंशों से ज्यादा अंतर होने पर ग्रह अस्त नहीं होते हैं । चन्द्र – 12 अंश / मंगल – 17 अंश / बुध – 13 अंश / गुरु – 11 अंश / शुक्र – 9 अंश / 

शनि – 15 अंश ।

8 - रत्न धारण – कोई भी ग्रह यदि 6 , 8 , 12 भाव में विराजमान हो या नीच राशी में विराजमान हो और हमारे कुंडली के अनुसार महत्वपूर्ण भाव का स्वामी हो तो उसका रत्न धारण करने से कोई परेशानी नहीं होती है ।  परन्तु स्वयं बिना परामर्श के रत्न धारण ना करें |

9 - सूर्य एवं चंद्रमा कभी भी मारक नहीं होते हैं । सूर्य एवं चंद्रमा को अष्टमेश अर्थात अष्टम भाव के स्वामी होने का दोष नहीं लगता है ।

10 - ग्रहों की मुख्य दृष्टि - सूर्य , चंद्र , बुध , शुक्र अपने स्थान से सप्तम भाव में दृष्टि डालते हैं । मंगल अपने स्थान से चतुर्थ भाव सप्तम भाव एवं अष्टम भाव पर दृष्टि डालते हैं । शनि अपने स्थान से तृतीय सप्तम एवं दशम भाव पर दृष्टि डालते हैं । गुरु , राहु , केतु अपने स्थान से पंचम सप्तम एवं नवम भाव पर दृष्टि डालते हैं ।

11 – नीचे दिये गए ग्रहों की युति दृष्टि संबंध ज्यादा परेशानी करते है । 

सूर्य – राहु , केतु , शनि 

चन्द्र - राहु , केतु , शनि 

मंगल - राहु , केतु , शनि 

बुध – केतु 

गुरु – राहु 

शुक्र – राहु

शनि – मंगल , राहु , केतु


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